Sunday, September 23, 2018

Devraha Baba -Gyan 5

न निर्बलोस्ति मादृशस्स्तथा भवादृशोवली,
न मत्समोस्ति पातकी न मोचकश्यत्वत्समः.
इदं विचित्रसंगतं हि दैवनिर्मितं प्रभो,
कदापि नैव मुच्यतामतीव दुर्लभं महत्. (६५)

प्रभो ! मेरे जैसा कोई निर्बल व्यक्ति नहीं है और आप जैसा बलवान भी कोई नहीं है. मेरे समान पातकी नहीं है और आप जैसा कोई पातकों से छुड़ानेवाला नहीं है. प्रभो ! यह विधाता द्वारा विचित्र संयोग ही रचा गया है. हे भगवन आप इसे कभी भी न छोड़े यह अत्यंत दुर्लभ ही है. (६५)

प्रभु ने हमें परम पूज्य ब्रह्मर्षि श्री देवराहा बाबा जी के पास पहुंचाकर एक विशेष संयोग रच दिया है. यह एक ऐसा संयोग है जो अत्यंत ही दुर्लभ है. यह संयोग है निर्बल और बलवान के मिलन का, पतित और पतित पावन का..

कोई अपने को निर्बल समझे यही दुर्लभ बात है. जगत में चार प्रकार के बल होते हैं – अपना बल, बन्धु-बान्धवों का बल, अपनी तपस्या ( क़ाबलियत ) का बल और अपने धन का बल. जब तक इनमें से एक भी रहता है तब तक व्यक्ति अपने को निर्बल मानता ही नहीं भले ही कितने कष्ट सहता रहे. वास्तव में तो यह सारे बल प्रभु की कृपा से ही हैं और जब प्रभु की विशेष कृपा होती है तब उनकी इस कृपा का बोध होता है. इसलिए अपने को निर्बल मानना ही दुर्लभ है. इसीतरह अपने को कोई पापी भी नहीं मानता है वरना पाप से दूर रहता और किए हुए पापों से छुटकारे का कोई उपाय करता.

अब कोई अपने को निर्बल मानकर किसी बलवान ( गुरु ) को पाने की चाह रखे या पतित मानकर पतित पावन को खोजे – यह दुर्लभ में भी दुर्लभ है. फिर किसी निर्बल को बलवान मिल जाए या पतित को पतित पावन मिल जाए – यह तो अत्यंत दुर्लभ है.

हे गुरुदेव ! जब प्रभु ने यह अत्यंत दुर्लभ संयोग करा ही दिया है तब आप कृपा करके इस जीव को स्वीकार लीजिए, इसे छोड़िये नहीं.

‘देवराहा बाबा स्तुति शतकम्’
रचयिता – अनंतश्री विभूषित श्रीसुग्रीव किलाधीश अयोध्या पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज
व्याख्याकर्ता – श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर स्वामी (डॉ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य जी महाराज
(‘प्रपत्ति प्रवाह’ ग्रन्थ से..)

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