इयं नदी त्वगाधनीरवाहिनीपुरोमम,
तरी च जीर्णतां गता न प्रत्ययस्तथात्मनि.
अवश्यमत्र मज्जने न शंसस्तथाप्यहं,
निशम्य नाविंक भवन्तमद्य चास्मिनिवृतः. (६४)
हे प्रभो ! मेरे सामने यह अगाध जल से पूर्ण नदी ही नहीं है, मेरी नौका भी पुरानी हो गयी है. अपने पर भी मुझे भरोसा नहीं है. अतः यद्यपि मेरे डूबने में कोई संदेह नहीं है फिर भी केवल यही भरोसा है कि आपने इस नैया की पतवार सम्भाल रखी है. (६४)
‘तुम्हारी हो रही किरपा तभी कायम यह हस्ती है
मिला है प्यार थोड़ा सा तभी जीवन में मस्ती है’
हमारी स्थिति ऐसी है कि सामने अगाध जल से भरी हुई नदी है, हमें तैरना आता नहीं है और पास में जो नाव वह भी जर्जर है. अब ऐसे में डूबना स्वाभाविक ही है.
यह अगाध जल से भरी हुई नदी – ‘संसार’ है. हम तैर नहीं सकते हैं मतलब हमसे कोई साधन नहीं बनता है. हम कोई साधन नहीं कर सकते हैं. ‘जर्जर नाव’ हमारे द्वारा पूर्व जन्म में हुए कुछ थोड़े-बहुत पुण्य हैं जिसके सहारे इस संसार को पार कर सकें. पर यह पुण्य उतने नहीं है जो आराम से पार लगा पायें इसलिए ‘जर्जर’ हैं.
अब इतना होने पर भी हम डूब नहीं रहे हैं, जबकि डूबने की पूरी-पूरी सम्भावना है, तो इसका कारण यही है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव ब्रह्मर्षि श्री देवराहा बाबा सरकार ने इस नाव की पतवार संभाल रखी है. पूज्य बाबा की कृपा से ही यह जीव डूबता नहीं है.
‘देवराहा बाबा स्तुति शतकम्’
रचयिता – अनंतश्री विभूषित श्रीसुग्रीव किलाधीश अयोध्या पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज
व्याख्याकर्ता – श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर स्वामी (डॉ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य जी महाराज
(‘प्रपत्ति प्रवाह’ ग्रन्थ से..)
तरी च जीर्णतां गता न प्रत्ययस्तथात्मनि.
अवश्यमत्र मज्जने न शंसस्तथाप्यहं,
निशम्य नाविंक भवन्तमद्य चास्मिनिवृतः. (६४)
हे प्रभो ! मेरे सामने यह अगाध जल से पूर्ण नदी ही नहीं है, मेरी नौका भी पुरानी हो गयी है. अपने पर भी मुझे भरोसा नहीं है. अतः यद्यपि मेरे डूबने में कोई संदेह नहीं है फिर भी केवल यही भरोसा है कि आपने इस नैया की पतवार सम्भाल रखी है. (६४)
‘तुम्हारी हो रही किरपा तभी कायम यह हस्ती है
मिला है प्यार थोड़ा सा तभी जीवन में मस्ती है’
हमारी स्थिति ऐसी है कि सामने अगाध जल से भरी हुई नदी है, हमें तैरना आता नहीं है और पास में जो नाव वह भी जर्जर है. अब ऐसे में डूबना स्वाभाविक ही है.
यह अगाध जल से भरी हुई नदी – ‘संसार’ है. हम तैर नहीं सकते हैं मतलब हमसे कोई साधन नहीं बनता है. हम कोई साधन नहीं कर सकते हैं. ‘जर्जर नाव’ हमारे द्वारा पूर्व जन्म में हुए कुछ थोड़े-बहुत पुण्य हैं जिसके सहारे इस संसार को पार कर सकें. पर यह पुण्य उतने नहीं है जो आराम से पार लगा पायें इसलिए ‘जर्जर’ हैं.
अब इतना होने पर भी हम डूब नहीं रहे हैं, जबकि डूबने की पूरी-पूरी सम्भावना है, तो इसका कारण यही है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव ब्रह्मर्षि श्री देवराहा बाबा सरकार ने इस नाव की पतवार संभाल रखी है. पूज्य बाबा की कृपा से ही यह जीव डूबता नहीं है.
‘देवराहा बाबा स्तुति शतकम्’
रचयिता – अनंतश्री विभूषित श्रीसुग्रीव किलाधीश अयोध्या पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज
व्याख्याकर्ता – श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर स्वामी (डॉ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य जी महाराज
(‘प्रपत्ति प्रवाह’ ग्रन्थ से..)
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